कार्तिक पूर्णिमा का रहस्य शंकर जी ऐसे बने त्रिपुरारी

तीर (बाण) बने भगवान शंकर एक बाण से तारकासुर के तीन पुत्रों का वध

Nov 15, 2024 - 20:38
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कार्तिक पूर्णिमा का रहस्य शंकर जी ऐसे बने त्रिपुरारी

उन्नाव । कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर श्रद्धालुओं ने गंगा के विभिन्न घाटों पर स्नान कर दान किया। और मां गंगा से अपनी मनोकमना मांगी। वहीं तांत्रिकों ने गंगा पर तंत्र विद्या सिद्ध करने के लिए साधना की। इस मौके अनेक घाटों पर लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ मौजूद रहे। 

कार्तिक पूर्णिमा का महत्व!

एक मान्यता यह भी है कि तारकासुर का वध भगवान शंकर के पुत्र कार्तिकेय ने किया था। तारकासुर के तीन बेटे तारकक्ष, कमलाक्ष विद्युन्माली हुए तारकासुर के वध के बाद उनके बेटे दुखी थे। उन्होंने ब्रह्मा जी से वरदान पाने के लिए तपस्या की ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर बोले बार मांगो तीनों ने कहा हमें 'अमर कर दो' लेकिन ब्रह्मा जी बोले कि इसके अलावा और कोई वरदान मांग लो। क्योंकि पृथ्वी पर जो जन्मा है उसकी मृत्यु निश्चित है। तीनों ने फिर कहा हमें एक-एक नगर चाहिए जिसमें बैठकर सारी पृथ्वी और आकाश में हम घूम सके।

हजारों वर्ष बाद जब भी हम भाई मिले तो वह तीनों नगर मिलकर एक हो जाए उस समय जो देवता एक ही बाण से तीनों नगरों को नष्ट कर दे। तभी हम लोगों की मृत्यु हो। ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह कर ऐसा वरदान दे दिया। इसके बाद तीनों भाईयों ने मिलकर अलग अलग तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया। और अपने मन मुताबिक राज्य करने लगे। देवता इनसे भयभीत होने लगे कि एक एक को कभी मारा नहीं जा सकता। इंद्रदेव इनसे भयभीत होकर भगवान शंकर के पास गए और तीनों की क्रूरता का बखान किया। इंद्रदेव की बात सुनकर भगवान शिव ने दिव्य रथ का निर्माण किया। दिव्य रथ की हर चीज देवताओं से निर्मित की गई। चंद्रमा और सूर्य दिव्य रथ के पहिए बने। वहीं इंद्र, वरुण, यम और कुबेर रथ को खींचने के लिए घोड़े बने। हिमालय धनुष और शेषनाग प्रत्यंचा बने, भगवान शिव स्वयं तीर(बाण) बने, और बाण की नोक अग्नि देव।

शंकर जी ऐसे बने त्रिपुरारी

कार्तिक मास में देवताओं और तारकासुर के सुपुत्रो से भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध करते-करते योजना वद्ध कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन तीनों तारकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली के नगर एक सीध में आ गये। उसी समय भगवान शिव रुपी बाण चला और तीनों का वध कर दिया। तभी से भगवान शिव का नाम त्रिपुरारी पड़ा। एक साथ तीनों का वध होने से कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहते हैं। हालांकि आर्यावर्त(भारत) में विद्वानों के अलग-अलग मत हो सकते हैं। वीलाइव इसकी पुष्टि नहीं करता।

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